बुधवार, 1 जुलाई 2009

कौध दामिनी सई स्म्रितिया उर मे आग लगा जाती है

कौंध दामिनी सी स्मृतिया , उर में आग लगा जाती हैं .
सम्मोहन स्वर मन में उभरे , बिरह मेघ जगा जाती हैं.
बिरह मेघ की बूंदों से नयन जलज हो जाते हैं.
सुन्या स्रादिस्य सूखे हृद्यांगन भावों से भर जाते हैं.
भाव भरे जब अंतर्मन में , मन पुलकित हो आह्लाद करे.
शुन्य मिलन हो आज प्रिये , ना अधरों पर अवसाद रहे.
भावभरी उस प्रेम सुधा का , हर पल हर छन पान करे.
कर आलिंगनबद्ध प्रतिग्या , आत्ममिलन का ग्यान करें.
हृदय तुम्हें देती हूँ प्रियतम , बंध कर हृदय मुक्त होते हैं.
देह नहीं है परिधि प्रणय की , दीव्य प्रणय उन्मुक्त होते हैं.


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